प्रश्न ५७: गुरुदेव! क्या आप गुरु-शिष्य संबंध का वर्णन कर सकते हैं?


 गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर:

क्या आपने देखा है जब आप कुछ सुंदर पाते हैं, या जब आप किसी व्यक्ति या वस्तु से प्यार करते हैं? आप इसे प्राप्त करके अपने पास रखना चाहते हैं। प्यार को पाने की चेष्ठा से प्यार में सुंदरता लुप्त हो जाती है, और प्यार को बदसूरत बना देती है। फिर वही प्यार आपको दर्द देता है।

जब भी आप किसी से प्यार करते हैं, तो आप उनको शर्तों में बांधने की कोशिश करते हैं। आप अनजाने में, सूक्ष्म तरीके से उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। जो कुछ भी आप नियंत्रित या काबू करने की कोशिश करते हैं, वह बदसूरत हो जाता है। क्योंकि हमारे छोटे मन में निरंतर चलता 'मैं , मैं , मैं '- खुद बदसूरत है। जब आप कुछ हासिल कर लेते हैं, तब आपका उस व्यक्ति या वस्तु के प्रति प्यार कम हो जाता है। क्या ऐसा नहीं है?

यह बचपन में माँ और बच्चे के रिश्ते से शुरू होता है, जब बच्चा अपनी माँ से अपेक्षा करता है की वह सिर्फ 'मुझे और अकेले मुझे प्यार करे'। यह एक गहरा संस्कार (अतीत की छाप) है। हम जिस व्यक्ति को प्यार करते हैं, उसे खोना नहीं चाहते। वह प्रेम जिसमें किसी को खोने का भय हो या व्यक्ति प्रफुल्लित न हो, ऐसा प्रेम द्वेषपूर्ण हो जाता है और ईर्ष्या पैदा होने लगती है। अक्सर हम ऐसी चीज से प्यार नहीं करते हैं जो बड़ी हो, जो बहुत विशाल हो। जब तक आप छोटे रहते हैं, तब तक किसी भी प्रकार की सुख, प्रसंता या शांति की अनुभूति नहीं होती है। आनन्द में विस्तार की अनुभूति होती है, जो आपके हृदय को विशाल करता है। यह केवल उस स्थिति में होता है जहां आप बहुत प्यार करते हैं लेकिन आप अधिकार नहीं जमाते हैं।

आप एक गुरु से प्यार कर सकते हैं, लेकिन वह सिर्फ आपके गुरु नहीं हो सकते। गुरु का होना आपके लिए अच्छा है, क्योंकि गुरु की उपस्थिति में आप गुरु से प्रेम करते हैं परंतु उनको नियंत्रित करने की चेष्ठा नहीं करते हैं। एक गुरु में, आप उस प्यार का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन आप उसे पकड़ नहीं सकते। आपका मन इसके पास नहीं है। क्योंकि आप उस प्रकार के प्यार के अभ्यस्त नहीं हैं, इसलिए आपका दिमाग इस प्रक्रिया में थोड़ा तनाव या निराशा से गुजर सकता है। यह खट्टे अंगूर की भांति है। प्रवृत्ति दूर भागने या वापस जाने की हो सकती है। लेकिन ऐसी प्रवृति आपको कहीं भी नहीं ले जाएगी। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे आपको तैरना आता है, लेकिन तैरने के बजाय आपने अपने पैर गीले कर लिए और फिर वापस चले गए। आपको प्यार करने का एक नया तरीका सीखने की ज़रूरत है और केंद्रित रहना चाहिए। और यहाँ वही होता है।

गुरु से प्यार करना पहला कदम है। ईश्वर सभी के अपने तथा सर्वव्यापक हैं, वह सारी सृष्टि के हैं। आप सार्वजनिक स्थानों से प्यार नहीं करते। हालांकि, एक गुरु के माध्यम से व्यक्तिगत संबंध होता है, और यह बंधन अनंत है। यह अनंतता के पुल हैं, क्योंकि इससे पहले आप केवल व्यक्तिगत कनेक्शन जानते थे।

गुरु प्यार करने के पैटर्न को तोड़ते हैं। जब भी आप शर्तों को निर्धारित करने या अधिकार प्राप्त करने लगते हैं, तो वह पूर्ण विपरीत कार्य करेंगे - आवश्यकता अनुसार स्क्रू को कस देंगे या ढीला कर देंगे। इसी प्रकार, एक गुरु कुछ भी नहीं करते लेकिन सब उनके माध्यम से हो जाता है। यह बिग माइंड (संकल्प) के माध्यम से हो रहा है। कोई पूर्व-कल्पित कार्य योजना नहीं है, यह क्रियाएं सहज होती हैं।

अपने गुरु-शिष्य क रिश्ते को अपने पिता, भाई, बहन, पत्नी या दोस्त जैसे दूसरे रिश्तों से मिश्रित न करें। यह किसी अन्य रिश्ते की तरह नहीं है। अन्यथा, आप एक ही प्रकार के अधिकारवादी रवैये में बंधे जाएंगे।


गुरुदेव के इन सुंदर लेखों को उनके आधिकारिक ब्लॉग पर भी पढ़ें:

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2. What made the disciple angry and the master happy? : CLICK HERE TO READ
3. Why did buddha wait for this little girl? : CLICK HERE TO READ


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