समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करने से जीवन शक्ति को दिशा मिलती है। इसके लिए कल्पना जरूरी है। अधिकांश लोगों के पास छोटी कल्पना शक्ति होती है और वे उस में फंस जाते हैं, और फिर इससे निराशा होती है। लेकिन यदि आप एक भक्त हैं, तो आप कहते हैं "लेट थि विल बी डन" (आपकी इच्छा पूरी होने दें) और फिर आप अपने लक्ष्य के लिए धीरे से कदम बढ़ाएंगे। आप इसे हल्के में लेंगे। हमें एक अंतर समझना होगा। कुछ लोग कहते हैं "भगवान पर सब छोड़ दें और आत्मसमर्पण करें" और दूसरों का कहना है कि "मुझे जिम्मेदार लेनी चाहिए।"
समर्पण कह रहा है "लेट थि विल बी डन" और "थि विल" (तुम्हारी मर्जी) आपके लिए पूरी दुनिया की जिम्मेदारी लेना है।
यह प्रकृति में विरोध और संघर्ष करता हुआ प्रतीत होता है - वास्तव में वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जितना अधिक आप आत्मसमर्पण करते हैं, आप उतने ही अधिक जिम्मेदार होते जाते हैं। जो गैर जिम्मेदार है वह आत्मसमर्पण भी नहीं कर सकता। कोई गैर जिम्मेदार क्यों होता है? वे आलसी या भयभीत या दोनों हैं। यदि आप आलसी या भयभीत हैं, तो आप प्यार में नहीं पड़ सकते।
पूर्ण जिम्मेदारी पूर्ण समर्पण है। इसे मानना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन यही सच है। लोग आमतौर पर कहते हैं कि या तो मैं जिम्मेदारी लेता हूं या समर्पण करता हूं, लेकिन मैं आपको बताता हूं कि जिम्मेदारी और समर्पण हाथ मिला के चलते हैं। मान लीजिए आप ज्ञान के लिए आत्मसमर्पण कर रहे हैं। इसका मतलब है कि आप इसे दूसरों के साथ साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आप यह देखने की जिम्मेदारी लेते हैं कि यह फलित होता है।
सवाल: कर्तापन से कन्फ़्युशन (भ्रम) आता है?
उत्तर: जब आप जिम्मेदारी लेते हैं तब आपको ब्लॉक मिलते हैं, तो याद रखें "समर्पण" करना। इससे आपको आगे बढ़ने की ताकत मिलती है। यह आपको कर्तापन के भार से मुक्त करता है। उत्तरदायित्व वर्तमान क्षण में जीवन की गतिशील अभिव्यक्ति है। जब आप डगमगा जाते हैं, तो समर्पण का मूल्य जिम्मेदारी लेना है यह याद रखें।
जिम्मेदारी लेना, या बिना कर्तापन के समर्पण करना बुद्धिमानों का कौशल है। आपके लिए सम्पूर्ण गैरजिम्मेदार होना असंभव है। सीमित जिम्मेदारी आपको कमजोर बनाती है। सूरज में थोड़ा पानी वाष्पित हो जाएगा लेकिन सागर कभी सूखता नहीं है। सीमित जिम्मेदारी आपको थका देती है। असीमित जिम्मेदारी आपको सशक्त बनाती है और आपको खुशी देती है।
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