प्रश्न 17: गणेश चतुर्थी का क्या महत्व है? | गुरुदेव श्री श्री रविशंकर


गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर:

गणेश चतुर्थी उस दिन मनाई जाती है जिस दिन ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश अपने सभी भक्तों के लिए धरती पर आते हैं। शिव और पार्वती के पुत्र, हाथी के सिर वाले गणेश जी को, ज्ञान समृद्धि और सौभाग्य के सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा जाता है। यह भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, इसलिए इस उत्सव का महत्व और भी बढ़ जाता है ।

गणेश को अजम निर्विकल्पम निराकारामेंकम् के रूप में वर्णित किया गया है। इसका अर्थ है कि गणेश कभी पैदा नहीं हुए। वे अजम (अजन्मा) हैं, वे निराकार (निराकार) हैं और वे  निर्विकल्प (गुण-रहित) हैं। गणेश उस चेतना के प्रतीक हैं जो सर्वव्यापी है। गणेश वही ऊर्जा है जो इस ब्रह्मांड का कारण है, जहां से सब कुछ प्रकट होता है और यह वही ऊर्जा है जिसमें पूरी दुनिया विलीन हो जाएगी। गणेश हमारे बाहर कहीं नहीं हैं, लेकिन हमारे जीवन का केंद्र हैं। लेकिन यह बहुत सूक्ष्म ज्ञान है। प्रत्येक व्यक्ति बिना रूप के निराकार का अनुभव नहीं कर सकता। हमारे प्राचीन ऋषियों और मुनियों को यह पता था; इसलिए उन्होंने सभी की समझ के लिए गणेश जी का एक साकार स्वरूप तैयार किया। वे जो निराकार का अनुभव नहीं कर सकते, साकार रूप के निरंतर अनुभव से निराकार ब्रह्म तक पहुँचते हैं।

इस प्रकार, साकार से आरंभ कर  धीरे धीरे  निराकार चेतना  प्रकट होने लगती है। गणेश चतुर्थी का उत्सव, गणेश जी के साकार स्वरूप की बार-बार पूजा द्वारा भगवान गणेश नामक निराकार परमात्मा तक पहुंचने का प्रतीक है। हम अपनी चेतना में गणेशजी से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे लिए मूर्ति में थोड़ी देर हमारे लिए बैठें ताकि हम उनके साथ खेल सकें। और पूजा के बाद, हम फिर से प्रार्थना करते हैं कि जहां से वे आए हैं वहीं वापस स्थित हो जाएं; वे ही हमारी चेतना हैं। जब वह मूर्ति में  होते हैं  उस समय हम मूर्ति की पूजा के माध्यम से हमें जो कुछ भी मिला है, उसे गणेश जी को समर्पित करते हैं।

पूजा के कुछ दिनों बाद मूर्तियों को विसर्जित करने (विसर्जन) की प्रथा इस समझ को पुष्ट करती है कि भगवान मूर्ति में नहीं है, वे हमारे अंदर हैं। अतः साकार रूप में सर्वव्यापी का अनुभव करना और उसी स्वरूप से आनंद को प्राप्त करना गणेश चतुर्थी उत्सव का सार है। इसलिए मूर्ति को स्थापित करें, अनंत प्रेम से उसकी पूजा करें, ध्यान करें और भीतर से भगवान गणेश का अनुभव करें। यह गणेश चतुर्थी उत्सव का प्रतीकात्मक सार है, जो हमारे भीतर के गणेश तत्व को जगाने के लिए है !


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