प्रश्न ५५: दुःख से बाहर निकलने का मार्ग क्या है? | गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर:

यदि आप दुखी हैं तो आप देखें  कि  तप , वैराग्य , शरणागति; इनमें से आपके भीतर किसी एक या फिर सभी की कमी है | 

तपस  माने  इस (वर्तमान) क्षण की पूर्ण स्वीकृति ! सुखद या असुखद परिस्थिति की पूर्ण स्वीकृति।

वैराग्य का अर्थ है 'मुझे कुछ नहीं चाहिए' और 'मै कुछ भी नहीं हूँ'।

शरणागति है  - "मैं आपके लिए यहाँ हूँ, आपके आनंद के लिए।"

यदि आप असंतुष्ट हैं तो आपमें  इनका (तप , वैराग्य , शरणागति) अभाव है, क्योंकि जब आप किसी स्थिति को स्वीकार करते हैं तो आप असंतुष्ट नहीं रह सकते; जब आप इसे तप के रूप में लेते हैं तो आप असंतोष नहीं दिखाएँगे; जब आप वैराग्य की अवस्था में  हैं ('मुझे कुछ नहीं चाहिए' की अवस्था ) तब भी आप असंतुष्ट नहीं रहेंगे ; और यदि आप  समर्पण कर रहे हैं तो भी आपको कोई शिकायत नहीं होगी।

ये तीनों (तप, वैराग्य और समर्पण) आपके मन को शुद्ध करते हैं और आनंद में आपका उत्थान करते हैं।

अगर आप इसे स्वेच्छा से नहीं करेंगे  तो आप हताशा होकर करेंगे। पहले आप कहते हैं, "कुछ नहीं किया जा सकता है।" फिर क्रोध और हताशा में आप कहते हैं, "मैं हार मानता हूँ , 'मुझे कुछ नहीं चाहिए', मेरे पास इसके अलावा  कोई विकल्प नहीं है!"


गुरुदेव के इन सुंदर लेखों को उनके आधिकारिक ब्लॉग पर भी पढ़ें:

1. What are you unhappy for? What is it that you are unhappy about? : CLICK HERE TO READ.
2. True love will not bring sadness, sorrow, misery or problems : CLICK HERE TO READ.
3. The Importance of Shraddha (Faith) : CLICK HERE TO READ.



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