प्रश्न ५८: अज्ञानी का प्रेम और ज्ञानियों का क्रोध हमारे जीवन में क्या दर्शाता है? | गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर:
अज्ञानी का प्रेम हानिकारक हो सकता है लेकिन प्रबुद्ध का क्रोध हानिकारक नहीं हो सकता है। यह केवल अच्छा हो सकता है!
बंगलोर के आर्ट ऑफ लिविंग स्कूल का एक उदाहरण लेते हैं जहां 250 बच्चे नामांकित हैं, लेकिन किसी भी दिन केवल 200 बच्चे ही कक्षा में आते हैं। पचास बच्चे नहीं आते। ऐसा क्यों? वे घर पर रोते हैं, "माँ, मैं स्कूल नहीं जाना चाहता।"
मां कहती है, "ओह, ला ला, रो मत...ठीक है।" वह सोचती है की "दुनिया का कोई भी बच्चा मेरे बच्चे जैसा नहीं है।" और इसलिए वह बच्चे का पक्षपात करने लगती है और उसके लिए बोलना शुरू कर देती है। वह शिक्षक की बात नहीं समझती। माँ शिक्षक से पूछती है, "आप मेरे बच्चे को ठीक से क्यूँ नहीं पढ़ाते हैं? वह इतना मासूम है, इतना प्यारा है।" इससे बच्चा बिगड़ जाता है। मां की अज्ञानता में छुपे लाड़-प्यार से बच्चा बर्बाद हो जाता है। बच्चा वर्णमाला, पढ़ना या लिखना नहीं सीखेगा, लेकिन माँ कहती है, "ओह, कोई बात नहीं, हमारे पास चराने के लिए भेंड़े और देखभाल करने के लिए खेत हैं ।" अज्ञानता में माँ के प्यार ने बच्चे को बिगाड़ दिया।
ज्ञानियों का क्रोध एक आशीर्वाद है। पुराणों में इसके कई उदाहरण मिलते हैं। एक बार एक गुरु अपने एक शिष्य के साथ भारत के मध्य प्रांत में यात्रा कर रहे थे, शिष्य गुरु से कुछ गज पीछे की दूरी पर था। तभी कुछ असभ्य, हुलड़बाज लड़कों ने शिष्य पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया और उसे अपमानजनक शब्द बोलने लगे। यह प्रकरण कुछ समय तक चलता रहा और वह लड़के गुरु और शिष्य का पीछा करते रहे। सभी जन एक नदी के पास आए। नदी पार करने के लिए गुरु और शिष्य एक नाव में सवार हो गए। लड़कों को भी एक नाव मिली जिसपे वह सवार हो गए, नदी के बीच में वह डूबने लगे।
गुरु ने अपने शिष्य को थप्पड़ मारा। शिष्य इतना हैरान था क्योंकि उसने अपने ताने के जवाब में लड़कों से एक शब्द भी नहीं कहा था। वह इतना अच्छा शिष्य था और फिर भी गुरु ने उसे थप्पड़ मारा।
गुरु ने कहा, "यह तुम्हारी गलती है, तुम उनकी नांव डूबने के लिए जिम्मेदार हो। तुमने उनके दुर्व्यवहार का जवाब नहीं दिया और अब प्रकृति उन्हें बद्दतर तरीके से दंडित कर रही है क्योंकि तुम्हारे पास उनके अपमान को रोकने के लिए पर्याप्त करुणा नहीं थी।"
गुरु के थप्पड़ ने इस घटना से कर्म को विहीन कर दिया, उसे लड़कों के भविष्य में नहीं ले जाया जाएगा। उन लड़कों को डूबता देख कर, अगर शिष्य के मन में थोड़ी भी प्रसंता जागृत हुई थी तो वह भी इस थप्पड़ से मिट जाती है। इससे शिष्य के लिए भी घटना के कर्म को भी छीन लिया। इसलिए प्रबुद्ध का गुस्सा भी एक आशीर्वाद होता है!
गुरुदेव के इन सुंदर लेखों को उनके आधिकारिक ब्लॉग पर भी पढ़ें:
1. 7 Things About Enlightenment Answered by Gurudev : CLICK HERE TO READ
2. Mysteries are to be lived, not understood : CLICK HERE TO READ
3. Story of Satyakama - By Sri Sri Ravi Shankar : CLICK HERE TO READ
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