गुरुदेव श्री श्री रविशंकर:
आपके पास अपने आप में पांच पहलू हैं: अस्ति (होना); भाती (ज्ञान, अभिव्यक्ति); प्रीति (प्यार); नामा (नाम); और रूपा (रूप)।
पदार्थ के दो पहलू हैं: नाम और रूप।
चेतना के तीन पहलू हैं: "होना" - वह है; जानना/अभिव्यक्ति - यह जानता और व्यक्त करता है; और प्यार - यह प्यार है।
यही पूरे ब्रह्मांड का रहस्य है।
चेतना के तीन पहलुओं से अवगत नहीं होना माया है। अज्ञान तब होता है जब कोई नाम और रूप में फंस जाता है।
प्रश्न: हम अपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर: ताकि हम पूर्णता की ओर बढ़ सकें। जीवन अपूर्णता से पूर्णता की ओर एक गति है। एक बीज में वृक्ष होता है लेकिन बीज को वृक्ष बनने के लिए बीज बनना छोड़ना पड़ता है। बीज परिपूर्ण नहीं है। पौधा परिपूर्ण नहीं है। पेड़ बनने के लिए पौधा बनना बंद करना होगा। तो जीवन में आप या तो हर कदम पर अपूर्णता देख सकते हैं, या आप एक पूर्णता से दूसरी पूर्णता की ओर गति देख सकते हैं।
आप जहां भी अपना ध्यान लगाएंगे, वह बढ़ेगा। किसी चीज की कमी पर ध्यान दोगे तो कमी और बढ़ जाएगी।
गुरुदेव के इन सुंदर लेखों को उनके आधिकारिक ब्लॉग पर भी पढ़ें:
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