गुरुदेव श्री श्री रविशंकर:
समझ तीन प्रकार की होती है: बौद्धिक समझ, अनुभवात्मक समझ और अस्तित्वगत बोध।
बौद्धिक समझ हाँ कहती है, सहमत है। अनुभवात्मक समझ लगता है, स्पष्ट है। अस्तित्वगत बोध अकाट्य है। यह तुम्हारा स्वभाव बन जाता है।
आप जो कुछ भी सुनते हैं वह केवल शब्दों की गड़गड़ाहट बनकर रह जाएगा यदि कोई अनुभवात्मक समझ नहीं है, जो कि भावना के स्तर पर अधिक है। आप बौद्धिक रूप से जान सकते हैं कि आप खाली और पोल हैं लेकिन बैठना और महसूस करना कि आप खाली और पोल हैं, ये बिल्कुल अलग है।
जब कोई अनुभव प्राप्त करता है, तो वह उसके बारे में और अधिक समझना चाहता है और एक साधक बन जाता है। यदि आपके पास केवल बौद्धिक समझ है, तो आप सोचेंगे कि आप यह सब जानते हैं। अधिकांश धर्मशास्त्री इसी श्रेणी में आते हैं।
अस्तित्वगत बोध के भीतर अनुभवात्मक और बौद्धिक समझ दोनों समाहित हैं। लेकिन यह इन दोनों से परे है।
प्रश्न: हम वहाँ कैसे पहुँचते हैं?
गुरुदेव : कोई रास्ता नहीं है। जब फल पक जाता है तो गिर जाता है।
प्रश्न: संदेह क्या है?
गुरुदेव : यह मन का एक भाग है जो मन के दूसरे भाग को चुनौती देता है।
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