प्रश्न १४८: गुरुदेव, प्राण (जीवन शक्ति ऊर्जा) कितना महत्वपूर्ण है? बेशक, यह जीवन देता है। कोई व्यक्ति अपने प्राण को कैसे सुधारता है?
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर:
प्राण हर चीज में मौजूद है। वास्तव में हम प्राण के सागर में तैर रहे हैं। जब अभिव्यक्ति की इकाई बदलती है, तो इससे फर्क पड़ता है।
पत्थरों में प्राण की एक इकाई मिली है। जल को दो इकाई प्राण मिला है। अग्नि को तीन इकाई प्राण मिले हैं।
वायु को प्राण की चार इकाई मिली है। पौधों को प्राण की पाँच इकाईयाँ मिली हैं। जानवरों को प्राण की छह इकाइयाँ मिली हैं। मनुष्य सात से १६ इकाई तक प्राण धारण करने में सक्षम है।
प्राण की अभिव्यक्ति ही संपूर्ण ब्रह्मांड है। जब प्राण इससे कम होता है, तब आप उदास महसूस करते हैं। जब प्राण और नीचे चला जाता है, तब तुम आत्मघाती अनुभव करते हो। जब प्राण सामान्य होता है, तो आप सामान्य महसूस करते हैं।
जब प्राण अधिक होता है, तो आप उत्साही महसूस करते हैं। जब प्राण बहुत अधिक होता है, तो आप ऊर्जावान और आनंदित महसूस करते हैं। इसलिए, जब लोग उदास होते हैं, या केवल परामर्श देने से काम नहीं चलता है, तो प्राण के स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जब प्राण उच्च होता है तो आनंद, जीवंतता और समझ होती है। जब प्राण कम होता है तो मन शिकायत करने लगता है और फिर अवसाद, सुस्ती, आत्महत्या की प्रवृत्ति पैदा होती है। सब प्राण का खेल और प्रदर्शन है।
अब हम प्राण कैसे बढ़ाएं? यहीं पर ध्यान, अभ्यास, सत्संग, योग, सात्विक आहार आदि सभी चलन में आते हैं।
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