प्रश्न १५८: गुरुदेव, मैं सोच रहा था कि वास्तव में मन क्या है? क्या यह हमारे दिमाग में थोड़ी सी जगह है या यह ब्रह्मांड है?
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर:
मन एक ऊर्जा है जो पूरे शरीर में व्याप्त है। देखिए, आपके शरीर की हर कोशिका किसी न किसी ऊर्जा का उत्सर्जन कर रही है और आपके आस-पास की सारी ऊर्जा को आप मन कहते हैं।
मन में जो होता है वह शरीर में प्रतिबिंबित होता है, जो आप शरीर में डालते हैं, वह मन में प्रतिबिंबित होता है।
मन मस्तिष्क में किसी बिंदु पर मौजूद नहीं होता है, लेकिन मन पूरे शरीर में होता है। चेतना के बारे में इतना गहरा ज्ञान है;-शरीर के चारों ओर कंपन हमारे चारों ओर चीजों को घटित करते हैं।कभी आपने गौर किया है? कभी कुछ लोगों को देखते हैं और बात करने का मन करते हैं तो कभी अकारण ही कुछ लोगों से दूर रहने का मन करता है।
इसलिए, अच्छे पारस्परिक कौशल के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है अपनी उपस्थिति, अपनी आभा को शुद्ध करना।
अधिक स्थूल स्तर पर, मन के दो आयाम हैं। एक खुला दिमाग और दूसरा बंद दिमाग।
एक खुला दिमाग ग्रहणशील होता है, सीखने के लिए तैयार होता है, पल को पकड़ने के लिए तैयार होता है।
एक बंद दिमाग कहता है, "मैं यह सब जानता हूं"। मन जो अपने को 'मैं सब जानता हूँ' की सीमा में सिमट कर रह गया है, वह व्यक्ति के व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से विकसित नहीं होने देता।
पूर्व में एक परंपरा में, एक धर्म को दिया गया नाम सिख है। सिख का अर्थ है जो सीखने के लिए हमेशा तैयार रहता है, और स्वयं का ज्ञान इतना विशाल है कि सीखने का अंत नहीं हो सकता।
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